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महाभय का नाश करने वाला गोपनीय से भी अति गोपनीय मंत्र है “दुर्गा कवच“
Durga Kavach – देवी दुर्गा कवच
माँ दुर्गा देवी कवच दुर्गा सप्तशती का एक भाग है| इसकी कथा कुछ इस प्रकार है:
एक बार ऋषि मार्कण्डेय ब्रह्माजी से बोले, कृपा कर के मुझे कोई ऐसा साधन बताइए जो मनुष्यो की हर प्रकार से रक्षा करने वाला है| एक ऐसा मंत्र जो इस संसार में गुप्त हैं और जिसे आपने आज तक कभी किसी के सामने उजागर नहीं किया है|
ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि एक गोपनीय से भी अति गोपनीय मंत्र है, जो समस्त प्राणियों का हित व् उपकार करने वाला है| ऐसा पुण्य गोपनीय मंत्र देवी दुर्गा का कवच है| और उन्होंने इसे ऋषि मार्कण्डेय को सुनाया| जिसे उन्होंने मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती पाठ के अंतर्गत लिखा है जिससे इसका पाठ कर मनुष्यों का कल्याण हो सके|
इस पोस्ट में दुर्गा कवच का पाठ हिंदी व् संस्कृत दोनों भाषाओ में दिया गया है, ऑफलाइन पढ़ने के लिए Durga Kavach PDF Download करे|
Durga Kavach PDF in Hindi Lyrics – देवी दुर्गा कवच लिरिक्स
।। माँ दुर्गा देवी कवच ।।
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी, दया करके ब्रह्माजी बोले तभी ।
के जो गुप्त मंत्र है संसार में, हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में ।।
हर इक का कर सकता जो उपकार है, जिसे जपने से बेडा ही पार है ।।
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का, जो हर काम पूरे करे सवाली का ।।
सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ, मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ ।।
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना, जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता ।।
नव दुर्गा का कवच ये, पढे जो मनचित लाये ।
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
पहली शैलपुत्री कहलावे, दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे ।।
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम, चौथी कुष्मांडा सुखधाम ।।
पांचवी देवी स्कंदमाता, छटी कात्यायनी विख्याता ।।
सातवी कालरात्रि महामाया, आठवी महागौरी जग जाया ।।
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने, नव दुर्गा के नाम बखाने ।।
महा संकट में वन में रण में, रुप होई उपजे निज तन में ।।
महाविपत्ति में व्योवहार में, मान चाहे जो राज दरबार में ।।
शक्ति कवच को सुने सुनाये, मनोकामना सिद्धी नर पाए ।।
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार ।।
बैल चढी महेश्वरी हाथ लिए हथियार ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
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हंस सवारी वाराही की, मोर चढी दुर्गा कौमारी ।।
लक्ष्मी देवी कमल असीना, ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा ।।
ईश्वरी सदा बैल सवारी, भक्तन की करती रखवारी ।।
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला, हल मूसल कर कमल के फ़ूला ।।
दैत्य नाश करने के कारन, रुप अनेक है किन्हें धारण ।।
बार बार मैं सीस नवाऊ, जगदम्बे के गुण को गाऊँ ।।
जगदम्बे के गुण को गाऊँ, जगदम्बे के गुण को गाऊँ ।।
कष्ट निवारण बलशाली माँ, दुष्ट संहारण महाकाली माँ ।।
कोटि कोटि माता प्रणाम, पूरण कीजो मेरे काम ।।
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ ।।
दास की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
अग्नि से अग्नि देवता, पूरब दिशा में ऐन्द्री ।।
दक्षिण में वाराही मेरी, नैऋत्य में खडग धारिणी ।।
वायु से माँ मृग वाहिनी, पश्चिम में देवी वारुणी ।।
उत्तर में माँ कौमारी जी, ईशान में शूलधारिणी ।।
ब्राह्मणी माता अर्श पर, माँ वैष्णवी इस फर्श पर ।।
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो ।।
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ।।
रक्षा करो रक्षा करो, रक्षा करो रक्षा करो ।।
सन्मुख मेरे देवी जया, पाछे हो माता विजया ।।
अजीता खड़ी बाएं मेरे, अपराजिता दायें मेरे ।।
उद्योतिनी माँ शिखा की, माँ उमा देवी सिर की ही ।।
मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी की माँ यशस्विनी ।।
भ्रुकुटी के मध्य त्रिनेत्रा, यम घंटा दोनो नासिका ।।
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी ।।
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो ।।
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ।।
रक्षा करो रक्षा करो, रक्षा करो रक्षा करो ।।
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ऊपर व् नीचे होठों की, माँ चर्चिका अमृत कली ।।
जिव्हा की माता सरस्वती, दांतों की कौमारी सती ।।
इस कठ की माँ चण्डिका, और चित्रघंटा घंटी की ।।
कामाक्षी माँ ठोड़ी की, माँ मंगला इस वाणी की ।।
ग्रीवा की भद्रकाली माँ, रक्षा करे बलशाली माँ ।।
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनुधारिणी ।।
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जगतारिणी ।।
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी, शोकविनाशानी ।।
छाती स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जगवासिनी ।।
हृदय उदर और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की ।।
गुह्येश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की ।।
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी ।।
टखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासिनी ।।
रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर ।।
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर ।।
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान ।।
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान ।।
धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन ।।
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण ।।
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार ।।
ब्राह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार ।।
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल ।।
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल ।।
भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश ।।
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश ।।
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये ।।
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए ।।
ऐ जगजननी कर दया, इतना दो वरदान ।।
लिखा तुम्हारा कवच ये, पढे जो निश्चय मान ।।
मनवांछित फल पाए, वो मंगल मूर्त बसाए ।।
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर आये ।।
ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य,
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया ।।
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा,
जगत की भलाई को मैंने बताया ।।
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित,
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया ।।
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो,
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया ।।
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जो संसार में अपने मंगल को चाहे,
तो हरदम कवच यही गाता चला जा ।।
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में,
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा ।।
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में,
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा ।।
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे,
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा ।।
तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा,
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए ।।
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा,
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें ।।
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक,
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये ।।
इसे नित्यप्रति चमन श्रद्धा से पढ़ कर,
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए ।।
इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे,
कृपा से आदि भवानी की बल और बुद्धि बढे ।।
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम ।।
सुख भोगे संसार में। अंत मुक्ति सुखधाम ।।
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादान ।।
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण ।।
।। ॐ नमश्चण्डिकायै ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ।।
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Durga Kavach Paath Ke Labh – देवी दुर्गा कवच पाठ के लाभ
ब्रह्माजी ने दुर्गा कवच में इसके पाठ से होने वाले अनेको लाभों का भी वर्णन किया है| इनमे से कुछ लाभ इस प्रकार है|
– जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो या शत्रुओं के बीच में रणभूमि में घिर हुआ हो| ऐसे कठिन से कठिन समय में भी व्यक्ति यदि देवी दुर्गा की शरण में आते है तो उनका कभी किसी भी प्रकार से अमंगल नहीं होता है और उनका भय भी मिट जाता है|
– युद्ध समय संकट की स्थिति में भी दुर्गा कवच के साधक के ऊपर कोई विपत्ति नहीं आती है|
– दुर्गा कवच के साधक को शोक दुख व् डर परेशान नहीं करता है|
– जो भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण करते है उनका निश्चित ही उन्नति होती है| जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इसका पाठ व् माता का स्मरण करते हैं इसमें कोई संशय ही नहीं की आप उनकी रक्षा करती है|
– माँ दुर्गा महारौद्र महाघोर पराक्रमी महाबली महौत्साही है और माता महाभय का भी नाश करने वाली है|
दुर्गा कवच पाठ – रक्षा प्रार्थना
दुर्गा कवच के पाठ से स्वतः होने वाली प्रार्थना के द्वारा साधक जगदम्बे माँ के अनेकों रूपों से अपनी और अपने परिवार की रक्षा की प्रार्थना करते है| रक्षा प्रार्थना इस प्रकार है:
हे जगदम्बे माँ मेरी रक्षा कीजिए| पूर्व दिशा में ऐन्द्री देवी मेरी रक्षा करे, अग्नि कोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही, नैर्ऋत्यां कोण में खड़गधारणी मेरी रक्षा करें पश्चिम दिशा में वारुणी मेरी रक्षा करे और वायव्यां कोण में मृग जिनका वाहन है वह देवी मेरी रक्षा करें| उत्तर दिशा में कौमारी और ईशानकोण में शूलधारणी देवी मेरी रक्षा करें| ब्रह्माणी आप ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करें| शव के वाहन वाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें| जया देवी सामने की ओर से और विजया पीछे की तरफ से मेरी रक्षा करें| बायें भाग में अजिता देवी दाहिने भाग में अपराजिता देवी मेरी रक्षा करें| उधोतिनी शिखा की और देवी उमा मेरे मस्तक पर विद्यमान होकर मेरी रक्षा करें|
माँ दुर्गा की नौ अभिव्यक्तियाँ
इस दुर्गा कवच मंत्र में ब्रह्माजी ने नवदुर्गा अर्थात देवी माँ दुर्गा के नौ नामों को बताया, माता के यह सभी नाम वेदभागवान के द्वारा बताए गए है| माता के इन्ही नौ अभिव्यक्ति की पूजा नवरात्रि में होती है|
देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप का नाम शैलपुत्री है व् दूसरे स्वरूप का नाम ब्रह्मचरिणी है| तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा चौथे स्वरूप कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है| दुर्गा जी के पांचवे स्वरूप का नाम स्कंदमाता व् छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है| सातवाँ स्वरूप कालरात्रि व् आठवा स्वरूप महागौरी के नाम के जगजायी है| भगवती का नवां स्वरूप सिद्धिरात्रि के नाम से जाना जाता है|
ये सभी नाम नव दुर्गा के नाम के नाम से प्रसिद्ध है|
माता के वाहन और उनके स्वरूप का ध्यान
दुर्गा कवच में माता के अनेकों रूपों का व् उनके वाहन का भी वर्णन किया हुआ है| माता का ध्यान करने जो इस प्रकार है
देवी चामुण्डा प्रेत पर सवार होती है, वाराही भैंसे पर सवारी करती है| देवी ऐन्द्री ऐरावत हाथी पर आरूढ़ होती है और वैष्णवी देवी गरुड़ पर आसन्न है| माहेश्वरी देवी वृषभ पर आरूढ़ होती है, कौमारी देवी मयूर पर सवार होती है| भगवान हरि की प्रिय महालक्ष्मी देवी कमल पर विराजमान है और उन्होंने अपने हाथों में भी कमल धारण किए हुए हैं| वृषभ वाहन वाली देवी ईश्वरी ने श्वेत रूप धारण किया हुआ है| ब्राह्मणी देवी पर हंस पर आरूढ़ है|
सभी देवी अनंत प्रकार के आभूषणों से विभूषित है और सभी माता सब प्रकार की योग शक्तियों से परिपूर्ण है| इनके साथ ही और भी बहुत सी देवियाँ है तथा वे सभी भी नाना प्रकार के रत्नो से सुशोभित है|
माता के इन स्वरूपों की तरफ देखने मात्र से शत्रु का भय बढ़ने लगता है| यह सभी देवियाँ क्रोध में भरी हुई है अपने भक्तों की रक्षा के करने हेतु रथ पर आरूढ़ है| यह देवियाँ अपने हाथो में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल व् मुसल खड़ग, तीर-धनुष, व् परशु, पाश अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं|
दैत्यों के देह का नाश करने व् अपने भक्तों को अभय दान देने और सभी देवताओं का हित करने के उद्देश्य से यह शस्त्र धारण करती है|
Durga Kavach in Sanskrit Lyrics
।। माँ दुर्गा देवी कवच ।।
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। अथ देव्यः कवचम् ।।
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।।
।। ॐ नमश्चण्डिकायै ।।
।। मार्कण्डेय उवाच ।।
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ।। 1
।। ब्रह्मोवाच ।।
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ।। 2
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। 3
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।। 4
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। 5
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ।। 6
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ।। 7
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते ।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ।। 8
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना ।। 9
माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना ।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ।। 10
श्वेतरुपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता ।। 11
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ।। 12
दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।। 13
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ।। 14
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।। 15
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोर पराक्रमे ।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ।। 16
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।। 17
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी ।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ।। 18
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी ।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा ।। 19
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।। 20
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ।। 21
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी ।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ।। 22
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी ।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ।। 23
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका ।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ।। 24
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ।। 25
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला ।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।। 26
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी ।
स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ।। 27
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ।। 28
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी ।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।। 29
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ।। 30
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी ।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।। 31
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।। 32
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी ।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ।। 33
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती ।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ।। 34
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेदया सर्वसंधिषु ।। 35
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।। 36।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ।। 37
रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ।। 38
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ।। 39
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ।। 40
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा ।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ।। 41
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।। 42
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ।। 43
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः ।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ।। 44
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः ।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ।। 45
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ।। 46
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः ।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ।। 47
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।। 48
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ।। 49
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ।। 50
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ।। 51
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।। 52
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।। 53
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी ।। 54
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ।। 55
लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते ।। ॐ ।।56
।। इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम् ।।
।। ॐ नमश्चण्डिकायै ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ।।
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