Panchmukhi Hanuman Kavach PDF in Hindi | पंचमुखी हनुमान कवच PDF

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पंचमुखी हनुमान कवच पाठ

Panchmukhi Hanuman Kavach PDF Lyrics

हनुमान जी को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए है हनुमान कवच मंत्र, हनुमान कवच में अपार शक्ति है और यह अद्भुत फलदायी है ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना स्वयं भगवान श्रीराम ने की है। जब भगवान् श्रीराम राक्षस रावण से युद्ध कर रहे थे तब उन्होंने हनुमान कवच का पाठ किया था। साथ ही सीता माता ने इस कवच का पाठ कर अपने चारों ओर सुरक्षा कवच बना कर अपने आपको सुरक्षित रखा था।

श्री हनुमान कवच अपने आप में भगवान् की शक्ति रखता है जिसके प्रभाव से बुराई पर जीत होती है, साथ ही बड़ी से बड़ी नकारात्मक शक्तियाँ भी साधक से दूर हो जाती है। यह पाठ साधक को भयानक से भयानक स्थिति से भी बाहर निकलने में सहायक है। (Panchmukhi Hanuman Kavach Benefits)

इस कवच का पाठ करने के लिए मन को शांत रखकर अपने मन को एकाग्र कर हनुमान जी के पंचमुखी स्वरुप का का ध्यान करना चाहिए। जब स्वरुप साफ़ दिखने लगे तब हनुमान जी को प्रत्यक्ष  विराजमान मानकर मन ही मन इस पाठ को करना चाहिए। पाठ के बाद हनुमान चालीसा, बजरंग बाण पाठ भी कर सकते है, यदि समय का अभाव हो तब पाठ के बाद हनुमान जी की आरती जरूर करे। ऑफलाइन पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करे और Panchmukhi Hanuman Kavach PDF मुफ्त डाउनलोड करे।

Panchmukhi Hanuman Kavach Lyrics in Hindi

।। श्री हनुमान कवच मंत्र ।।

।। श्री गणेशाय नम: ।।

।। ॐ श्री हनुमते नमः ।।

ॐ अस्य श्रीपञ्चमुख हनुमतकवच मंत्रस्य ब्रहमा ऋषि: ।
गायत्री छंद्: । श्रीपञ्चमुख विराट हनुमान देवता| ह्रीम बीजम् ।
श्रींम शक्ति:। क्रौ कीलकम्। क्रूं कवचम्। क्रै अस्त्राय फ़ट् ।

।। इति दिग्बंध्: ।।

।। श्री गरूड उवाच् ।।

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रुणु सर्वांगसुंदरम् ।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम् ।।
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपंच नयनैर्युतम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम् ।।

पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् ।
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटी कुटिलेक्षणम् ।।
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुष्पं भीषणम भयनाशनम् ।।


पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ।।
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तंनभोपमम् ।
पाताले सिंह बेतालं ज्वररोगादिकृन्तनम ।।

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम् ।।
जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम् ।

ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ।।
खड्गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं ।।
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रा दसभिर मुनिपुंगवम् ।

एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ।।
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण्भुषितम् ।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम ।।
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद् विश्वतोमुखम् ।


पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्ण वक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम् ।
पीताम्बरादिमुकुटैरूप शोभितांगं पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ।।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् । शत्रुं संहरमां रक्ष श्री मन्नापदमुध्दर ।।
ओम हरिमर्कट मर्कट मंत्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले ।।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुंच्यति मुंच्यति वामलता ।।

ओम हरिमर्कटाय स्वाहा ओम नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा ।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूडाननाय सकलविषहराय स्वाहा ।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा ।
ओम नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा ।

ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमत् मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषि: अनुष्टुपछन्दः पञ्चमुख वीर हनुमान देवता हनुमान इति बीजं वायुपुत्रः इति शक्तिः अंजनी सूत इति कीलकम श्रीरामदूत हनुमत प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

ॐ अंजनी सुताए अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये तर्जने भयाम नमः । शिरसे स्वाहा ।
ॐ वायु पुत्राये तर्जनीभ्यां नमः । शिखायै वौषट ।
ॐ अग्निगर्भये अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुम् ।


ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । नेत्रत्रयाय वौषट ।
ॐ पंचमुख हनुमते करतलेपृष्ठाभ्यां नमः ।अस्त्राय फट ।
इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः ।
एकवारं जपे स्त्रोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ।।

द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
त्रिवारं च पठेत नित्यं सर्वसंपत्करं शुभम ।।
चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।
पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोक वशमकरम् ।।


षड्वारं तु पठेन्नित्यं सर्वदेव वशमकरम् ।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सौभाग्यदायकम् ।।
अष्टवारं पठेन्नित्यं सर्व अष्टकामार्थसिद्धिदम् ।
नववारं पठेन्नित्यं सर्वैश्वर्य प्रदायकम् ।।
दशवारं च पठेन्नित्यं त्रैलोक्य ज्ञानदर्शनम् ।
एकादशं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिं लभेन्नरः ।।

।। ओम श्रीपंचमुखहनुमंताय आंजनेयाय नमो नम: ।।

।। श्रीपञ्चमुखी हनुमत्कवच समाप्तं ।।

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