Shani Chalisa PDF | शनि चालीसा PDF | Shani Mantra

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शनि चालीसा के पाठ से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते है| जब शनिदेव प्रसन्न होते हैं तब उनकी कृपा से असंभव कार्य भी मिनटों में हो जाते है, उनकी कृपा के पात्र क्षण में रंक से राजा बन जाते है। किन्तु उनके नाराज होने पर चींटी के सामान समस्या भी पर्वत सामान हो जाती है।

शनि जयंती 2022Shani Jayanti 2022

वर्ष 2022 में शनि जयंती 30-May-2022 सोमवार के दिन है।

शनि चालीसाShani Chalisa

जो भी भक्त श्रद्धा भाव से इस चालीसा का चालीस दिन पाठ करते है उन पर भगवान् शनिदेव की विशेष कृपा होती है और वो भक्त भवसागर से पार हो जाते है। शनि चालीसा के नित्य पाठ से होने वाले लाभ (Shani Chalisa Benefits) पढ़ने के लिए और Shani Chalisa PDF Download करने के लिए नीचे स्क्रॉल करे।

शनि चालीसा हिंदी अनुवाद सहितShani Chalisa PDF Lyrics with Meaning in Hindi

।। शनि चालीसा ।।

।। दोहा ।।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज । करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ।।

हिंदी अनुवाद
हे पार्वती माता के लाडले पुत्र प्रभु श्री गणेश, आपकी सदा जय हो। आप मंगलकारी व् सब पर अपनी कृपा बरसाने वाले हैं। हे प्रभु, हम दीन-हीन लोगों के दुख दुर कर हमें निहाल करें। हे श्री शनिदेव, आपकी सदा ही जय हो, हे महाराज, हमारी विनती सुनिए, हे भगवान् सूर्यपुत्र हम पर अपनी कृपा करें और हमारी लाज रखें।

।। चौपाई ।।

जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।।
चारि भुजा तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छबि छाजै ।।
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिय माल मुक्तन मणि दमकै ।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ।।


हिंदी अनुवाद
हे दयालु प्रभु शनिदेव, आपकी सदा जय-जयकार हो, आप सदा अपने भक्तों का पालन-पोषण करते है। आपकी चार भुजाये व् श्याम वर्ण है। आपके मस्तक पर पहना रतन जड़ित मुकुट आपकी छवि की शोभा को और बढा रहा है। आपका बड़ा मस्तक मनोहर है, आपकी विकराल भृकुटी व् टेढी दृष्टि है। आपके कानों के सोने के कुंडल अत्यंत ही चमकदार हैं। आपके गले में मोतियों व मणियों का माला दमक रही है। आप अपने हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार अस्त्र धारण किए हुए हैं, जिनसे आप पल भर में ही शत्रुओं का संहार कर देते हैं।

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ।।
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।।
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं । रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ।।
पर्वतहू तृण होई निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ।।

हिंदी अनुवाद
पिंगल, कृष्ण, छाया, नन्दन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये आपके दस नाम हैं। हे भानुपुत्र, सभी कार्यों की सफलता के लिए आपको पूजा जाता है। जिस पर आप प्रसन्न होते हैं, आपकी कृपा से वह क्षण मात्र में ही रंक से राजा बन जाते है। आपके भक्तजनो के सामने पर्वत समान समस्या भी उसे घास के तिनके सी हो जाती है परंतु यदि आप जिस पर नाराज हो जांए तो उनकी तिनके समान छोटी सी समस्या भी पर्वत रूपी बड़ी बन जाती है।

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ।।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ।।
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ।।
रावण की गति मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।।
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग  बीर की डंका ।।

हिंदी अनुवाद
हे शनिदेव, आपकी ही दशा के कारण भगवान् श्रीराम को राज्य की जगह वनवास मिला। आपकी दशा ने केकैयी की मति को हर लिया था। वन में मायावी मृग ने जो कपट दिखाया तो आपकी दशा के कारण ही माता जानकी की चतुराई भी किसी काम ना आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मणजी को शक्ति लगी और उनके प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ परिणामस्वरूप उनके दल में हाहाकार मच गया था। आपकी दशा से रावण की मति भ्रस्ट होने से उसने ऐसा बुद्धिहीन काम किया कि प्रभु श्रीराम से बैर बढाई। आपकी दशा के कारण वीर बजरंग बली ने लंका को जलाकर राख कर दिया व् उनका डंका पूरे विश्व में बजा।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ।।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ।।
तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ।।

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हिंदी अनुवाद
आपके रुष्ट होने पर राजा विक्रमादित्य को जंगल-जंगल भटकना पड़ा। उनके आँखों के सामने मोर का चित्र हार निगल लिया और उन्हें चोर समझा गया। नौलखे हार को चुराने के शक में उनके हाथ पैर तुड़वा डाले। आपकी दशा के कारण ही उन्हें एक तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा था। जब राजा विक्रमादित्य ने राग दीपक में आपसे विनती कर आपको प्रसन्न किया तो आपने उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया।
आपकी उल्टी दशा चलने से राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तक बिक गई, और उन्हें खुद भी डोम के घर पानी भरना पड़ा। ऐसे ही आपकी उलटी दशा चलने पर राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट भोगना पड़ा, और भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई और राजा नल को भूखों मरना पड़ा।

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पार्वती को सती कराई ।।
तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ।।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ।।
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो ।।
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ।।
शेष देवलखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ।।


हिंदी अनुवाद
आपकी उल्टी दशा जब भगवान शंकर पर पड़ी तो पार्वती जी को हवन कुंड में कूदकर सती होना पड़ा। आपके कोप से श्री गणेश का शीश धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।
जब आपकी उल्टी दशा पांडवों पर पड़ी तो द्रौपदी चीरहरण होते-होते बची। आपकी उल्टी दशा के कारण कौरवों की मति मारी गयी, उनके कर्म उलटे हो गए और उन्होंने महाभारत का युद्ध कर डाला।
आपके पिता सूर्यदेव की उल्टी चलने पर आप स्वयं उन्हें अपने मुख धर पाताल लोक में कूद गए थे और बाकी देवताओं द्वारा लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से छोड़ा था।

वाहन प्रभु के सात सजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पति उपजावैं ।।
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्धकर राज समाजा ।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ।।


हिंदी अनुवाद
हे प्रभु शनिदेव, हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर ये आपके सात वाहन हैं। जिस वाहन पर सवार हो आप आते है उसके आधार पर ही ज्योतिष फल की गणना करते है। जब आप हाथी पर सवार आते हैं घर में लक्ष्मी आती है। जब घोड़ा आपकी सवारी होता हैं तो सुख-संपत्ति का लाभ होता है। जब आप गधे पर सवार आते है तो कार्यों में रुकावटे आती है| शेर पर सवार जब आप आते हैं तो समाज में प्रसिद्धि व्  मान-सम्मान बढाते हैं| जब सियार पर सवार होकर आते है तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है| हिरण पर सवार जब आप आते हैं तो जानलेवा शारीरिक कष्ट व् प्राण जाने तक खतरा होता हैं। हे प्रभु, जब आप कुत्ते पर सवार आते हैं तो यह किसी चोरी का भारी डर रहता है।

तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ।।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ।।
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी ।।


हिंदी अनुवाद
ऐसे ही आपके चरण भी चार धातुओं सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि के हैं। जब आप लोहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, प्रियजन या संपत्ति को नष्ट कराते है। जब आप चांदी या तांबे के चरण पर आते हैं तो यह शुभकारी माना जाता है। जब आप सोने के चरणों में पधारते हैं तो यह सर्वसुखदायी व् मगलकारी होता है।

जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।।


हिंदी अनुवाद
जो यह शनि चरित्र को प्रतिदिन गाएगा उन्हें कभी भी आपकी उल्टी दशा का कोप नहीं सहना पड़ेगा और ना ही उन्हें आपकी दशा का भय सताएगा। उनके जीवन में भगवान शनिदेव अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं और उनके शत्रुओं का नाश व् बल को कमजोर कर देते हैं।
जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधिवत शनि ग्रह की शांति पाठ कराता है। पीपल वृक्ष को शनिवार के दिन जल चढ़ाता है और संध्या काल पीपल वृक्ष के नीचे दीया जलाता है वो बहुत सुख पाते है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर कहता है कि प्रभु शनिदेव के सुमिरन से जीवन में अज्ञानता का अंधकार मिटकर ज्ञान रूपी प्रकाश फैलता है और फलस्वरूप जीवन सुख से भर जाता है।

।। दोहा ।।
पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार । करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।।

हिंदी अनुवाद
श्री शनिदेव के इस पाठ को भक्त विमल ने तैयार किया है| जो भी इस चालीसा का चालीस दिन तक नित्य पाठ करता है वह शनिदेव की कृपा से भवसागर से पार हो जाता है।

Shani Chalisa PDF in Hindi Download Link

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शनिदेव जी स्वरुप

शनिदेव जी का श्याम वर्ण हैं, उनकी चार भुजाएं हैं जिनमे एक-एक भुजा में वह धनुष, बाण, त्रिशूल लिए हुए है व एक भुजा वर मुद्रा में है। उनके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट, कानों में सोने के कुंडल, गले में मोतियों व मणियों जड़ित हार उनकी शोभा बढाता है। उनकी भृकुटी विकराल दिखती है चूँकि उनकी सीधी दृष्टि जिन पर पड़ती है उनका अनिष्ट होता है। किसी का अनिष्ट ना हो इसलिए वह सदैव टेढी दृष्टि रखते हैं।

शनि चालीसा पाठ के लाभShani Chalisa Path Benefits

भगवान् सूर्यमाता छाया के पुत्र शनिदेव जी भक्तवत्सल और पालनहार हैं। शनिदेव जी दस नाम जो है पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन, सौरी, मंद, शनि। जीवन में सभी कार्यों की सफलता के लिए उनकी पूजा (Shani Chalisa Benefits) की जाती है।

शनि चालीसा में लिखा गया है कि प्रतिदिन शनि चालीसा का पाठ करने से शनिदेव के कोप का सामना नहीं करना पड़ता है, और उनकी विपरीत दशा का डर समाप्त हो जाता है। भक्तो पर शनिदेव जी की कृपा होती है, भक्तो के शत्रु कमजोर हो जाते हैं।

साथ ही साथ चालीसा में शनि की दशा को शांत करने का उपाय भी बताया गया है, उपाय अनुसार पीड़ित को योग्य पंडित के द्वारा विधि-विधान और नियमअनुसार पूजा के द्वारा शनि ग्रह की शांति का पाठ करवाना चाहिए। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देना चाहिए और सांय काल दीया जलाने से जीवन में से अंधकार मिट जाता है और जीवन प्रकाशमय हो जाता है। इस प्रकार शनि महाराज का सुमिरन करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती है।

शनिदेव जी के सात वाहन व चार चरण बताते है जीवन में क्या आने वाला है

शनि चालीसा में वर्णन है कि शनिदेव जी सात वाहनो और चार चरणों में आते है। उनके हर वाहन और चरण के अनुसार दशा का अलग-अलग फल निश्चित है, उनके इन्ही वाहनों और चरणो के आधार पर ही ज्योतिष फल की गणना करते है।

सात वाहनों की दशा का फल इस प्रकार है

  • जब हाथी पर सवार होकर आते हैं तो लक्ष्मी आती है।
  • जब घोड़ा सवारी होता है तब सुख संपत्ति की वृद्धि होती है।
  • जब गधे पर सवार होकर आते है तो कार्यों में अड़चन आती है।
  • जब शेर पर सवार होकर आते है तो समाज प्रसिद्धि और मान-सम्मान बढ़ता हैं।
  • जब सियार पर सवार होकर आते है तो बुद्धि नष्ट हो जाती है।
  • जब हिरण पर सवार होकर आते है तो शरीर मृत्युतुलय कष्ट होता है।
  • इसी प्रकार जब कुत्ते पर सवार आते हैं तो चोरी का भय होता है।

चार चरणों की दशा का फल इस प्रकार है

  • जब लोहे के चरण पर आते हैं तो धन, जन, संपत्ति की हानि होती है।
  • जब तांबे या चांदी के चरण पर आते हैं तो यह शुभकारी होता है।
  • वही जब सोने के चरण पर आते हैं तब दशा भारी मंगलमय होती है और सभी सुखो की प्राप्ति होती है।

श्री शनिदेव मंत्रShri Shanidev Mantra

Shani Mantra
Shani Mantra

।। शनि बीज मंत्र ।।

ऊं प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ।।

।। शनि एकाक्षरी मंत्र ।।

।। ऊँ शं शनैश्चाराय नमः ।।

।। शनि मूल मंत्र ।।

नीलांजन समाभासं रवि पुत्रां यमाग्रजं । छाया मार्तण्डसंभूतं तं नामामि शनैश्चरम् ।।

शनि गायत्री मंत्र | Shani Gayatri Mantra

औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात ।।

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